शायद उस रोज भी मौत मेरे पास आई थी जब मैं ग्याहर साल की थी। पीत ज्वर के कारण मैं लगभग मरणासन्न पर थी, मेरी आँखों में पीलापन इस कदर भर गया था कि चारों और पीला-पीला नजारा था । मेरी माँ मेरे पास बैठी रही, एक रोज मैंने माँ से कहा 'खिड़की के पर्दें खोल दो.....' मैं खिड़की के बाहर पीले-पीले सरसों के फूलों को देखकर मोहित हुए जा रही थी । सभी जगह पीलापन था पर सरसों के गहरे पीले फूल सच्चे लग रग रहे थे । मैं साफ देख रही थी चारों और पीले रंग में लिपटी वस्तुओं के बीच एक काले रंग का साया मुझे चारों पहर घेरे रहता था । शायद वह मेरी इंतजार कर रहा था, मैं उससे डरी नहीं । उस रोज वह मुझे अपने साथ नहीं ले जा पाया पर इस बार वह मेरे पास पूरी ताकत के साथ खड़ा है... इस ओर .. क्या तुम उसे देख पा रहे हो? कहते हुए अपर्णा के चहरे पर भय की रेखाएं खिंच आई।