ऐप डाउनलोड करें
प्रतिलिपि
फ्रेम
प्रज्ञा
(123)
पाठक संख्या − 16948
पढ़िए
लाइब्रेरी में जोड़े
सारांश
‘‘आज शाम पांच बजे आई. एन. ए.... दिल्ली हाट’’‘‘ओ.के.’’‘‘ठीक पांच’’‘‘ओ.के.’’रावी और जतिन के बीच दिन भर में न जाने कितने मैसेजेस का आदान-प्रदान होता रहता है। कहने को दोनों एक ही जगह काम करते हैं पर कितने
टिप्पणी
टिप्पणी लिखें
Deepak Ganguli
durhi.
रिप्लाय
Vimalkumar Jain
achhi hai
रिप्लाय
Navneet Sharma
osm
रिप्लाय
Manu Prabhakar
प्रज्ञा मेम कहानी की शुरुआत बहुत अच्छी क्योंकि बहुतों की नजरें जमाये होने के बाद भी प्रेम मजबूत था पर अंत लाचार!!!! कारण समझ नहीं आया।
रिप्लाय
डॉ. ए सतीश
क्या अद्बुत कहानी है मैम नमन लेखनी को
रिप्लाय
पिया सिंह
दिल को छू गई आपकी रचना।हमारे समाज का असली चेहरा बड़ी सादगी से पेस किया है अपने।
रिप्लाय
Nidhi Gupta
बहुत सुंदर कहानी। परंतु अंत दिल को झकझोरने वाला था। अंत में पात्रों के साथ इंसाफ नही किया ।
रिप्लाय
Sonia Pratibha "Tani"
बहुत सुंदर कहानी कर पर अंत अखर रहा है साधुवाद
रिप्लाय
Kamlesh Budlakoti
tactful literature....top class
रिप्लाय
Peetambara Malik
so touchy story.
रिप्लाय
सारी टिप्पणियाँ देखें
hindi@pratilipi.com
080 41710149
सोशल मीडिया पर हमें फॉलो करें।
हमारे बारे में
हमारे साथ काम करें
गोपनीयता नीति
सेवा की शर्तें
© 2017 Nasadiya Tech. Pvt. Ltd.