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न हुई गर मेरे मरने से तसल्ली न सही
मिर्ज़ा ग़ालिब
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सारांश
न हुई गर मेरे मरने से तसल्ली न सही इम्तिहाँ और भी बाक़ी हो तो ये भी न सहीख़ार-ख़ार-ए-अलम-ए-हसरत-ए-दीदार तो है शौक़ गुलचीन-ए-गुलिस्तान-ए-तसल्ली न सहीमय परस्ताँ ख़ूम-ए-मय मूंह से लगाये ही बने एक दिन गर
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दीपिका पाण्डेय "क्षिर्ज़ा"
सितम ढाए ग़र ज़माने ने रूह समेटे हुए बा खु़दा। "क्षिर्ज़ा "ए मोहब्बत भी है कुछ कम नहीं।। 🙂 उत्तम।।
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Sanjeev Chaudhary
👍
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Amit Kumar
8
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Akhilesh Singh
awsome
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