कितनी मासूमियत है तेरे चेहरे पर बचपन के खेल की लकीरें चेहरे पर
माँ के पल्लू में छुप जाता जब कभी तू आँगन की मिट्टी का तिलक है चेहरे पर
बहन से लड़ाई करते कभी ज़िद्द करते उन्हीं के लिए उदासी लिपता चेहरे पर
साथ रहकर कभी जिसे समझ न पाया था उसी का इंतज़ार करती झुर्रियाँ है चेहरे पर
- पंकज त्रिवेदी *