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ठाकुर के दालान से निकला तो उसका दिल धाड़-धाड़ कर रहा था। इतनी खुशी वह कैसे सँभाले? कहाँ रखे? घुप्प अँधेरा। ओस से गीली घास पर चलते हुए पैरों में कीचड़ सने तिनके चिपकने लगे। पहर रात बीते ही इतनी ओस। ...
बाबू ईश्वरचंद्र को समाचारपत्रों में लेख लिखने की चाट उन्हीं दिनों पड़ी जब वे विद्याभ्यास कर रहे थे। नित्य नये विषयों की चिंता में लीन रहते। पत्रों में अपना नाम देख कर उन्हें उससे कहीं ज्यादा खुशी ...
वाजिदअली शाह का समय था। लखनऊ विलासिता के रंग में डूबा हुआ था। छोटे-बड़े, गरीब-अमीर सभी विलासिता में डूबे हुए थे। कोई नृत्य और गान की मजलिस सजाता था, तो कोई अफीम की पीनक ही में मजे लेता था। जीवन के ...
मैं बर्लिन नगर का निवासी हूँ। मेरे पूज्य पिता भौतिक विज्ञान के सुविख्यात ज्ञाता थे। भौगोलिक अन्वेषण का शौक मुझे भी बाल्यावस्था ही से था। उनके स्वर्गवास के बाद मुझे यह धुन सवार हुई कि पैदल पृथ्वी के ...
पापा का चार बार फोन आ चुका था ।डॉ द्वारा ऑप्रेशन बता दिया गया।सोमवार को ऑप्रेशन होना है।मात्र तीन सौ किलोमीटर की दूरी पर रह रहा हूँ। फिर भी घर पहुँचने की कितनी जुगत लगानी पड़ती है। सोमवार को ही हैप्पी ...
प्रात:काल स्नान-पूजा से निपट, तिलक लगा, पीताम्बर पहन, खड़ाऊँ पाँव में डाल, बगल में पत्रा दबा, हाथ में मोटा-सा शत्रु-मस्तक-भंजन ले एक जजमान के घर चला। विवाह की साइत विचारनी थी। कम-से-कम एक कलदार का ...
तारा ने बारह वर्ष दुर्गा की तपस्या की। न पलंग पर सोयी, न केशो को सँवारा और न नेत्रों में सुर्मा लगाया। पृथ्वी पर सोती, गेरुआ वस्त्र पहनती और रूखी रोटियाँ खाती। उसका मुख मुरझाई हुई कली की भाँति था, ...
मीर दिलावर अली के पास एक बड़ी रास का कुम्मैत घोड़ा था। कहते तो वह यही थे कि मैंने अपनी जिन्दगी की आधी कमाई इस पर खर्च की है, पर वास्तव में उन्होंने इसे पलटन से सस्ते दामों मोल लिया था। यों कहिए कि यह ...
मज़मा लगा था | भारी भीड़ थी | बच्चे –जवान -बूढ़े, महिला-पुरूष,लूले-लंगड़े, सूरदास सब मौजूद | पुलिया का पनवाडी नत्थू,चतरू चाय वाला, फ़क़ीरा सब्जी ठेले वाला, मोची गोविन्दा, मेहतर,दुकानदार सब खडे थे | मारो ...
दफ्तर में जरा देर से आना अफसरों की शान है। जितना ही बड़ा अधिकारी होता है, उत्तरी ही देर में आता है; और उतने ही सबेरे जाता भी है। चपरासी की हाजिरी चौबीसों घंटे की। वह छुट्टी पर भी नहीं जा सकता। अपना ...
ईरान और यूनान में घोर संग्राम हो रहा था। ईरानी दिन-दिन बढ़ते जाते थे और यूनान के लिए संकट का सामना था। देश के सारे व्यवसाय बंद हो गये थे, हल की मुठिया पर हाथ रखनेवाले किसान तलवार की मुठिया पकड़ने के ...
गांव में खानों का आना बरसों से जारी है। बदस्तूर। अक्तूबर के अन्त नवम्बर के शुरू या फिर दीवाली के बाद वे अपने वतन से यहां आते हैं। कश्मीर में जब सर्दी दस्तक देने लगती है तो जाहिर है काम धन्धों पर ...
बिहार के मिथिला में प्रचलित एक प्रथा । “गोलाट ” शब्द का क्या परिभाषा होता है , यह तो मुझे नहीं पता । लेकिन इस प्रथा को मै किस नज़रिये से देखता हूं । इसका पता आप लोगो को इस कहानी से पता चल जायेगा । रोज़ ...
कांग्रेस कमेटी में यह सवाल पेश था-शराब और ताड़ी की दूकानों पर कौन धरना देने जाय? कमेटी के पच्चीस मेम्बर सिर झुकाये बैठे थे; पर किसी के मुँह से बात न निकलती थी। मुआमला बड़ा नाजुक था। पुलिस के हाथों ...
मेरा जीवन सपाट, समतल मैदान है, जिसमें कहीं-कहीं गढ़े तो हैं, पर टीलों, पर्वतों, घने जंगलों, गहरी घाटियों और खण्डहरों का स्थान नहीं है। जो सज्जन पहाड़ों की सैर के शौकीन हैं, उन्हें तो यहाँ निराशा ही ...